डॉ आलोक चान्टिया , अखिल भारतीय अधिकार संगठन
वैसे विषय पढ़कर कुछ अजीब लग सकता है पर आज मैंने चिम्पांजी को इस लिए लिया है क्योकि यही एक मात्र ऐसा नर वानर है जिसके शरीर में पाये जाने वाले अनुवांशिक पदार्थ ( जिसे वैज्ञानिक भाषा में आप डी एन ए कहते है ) और मानव में पाये जाने वाले आनुवंशिक पदार्थ में 96.4 प्रतिशत समानता है |और जहा मानव की रचना के लिए 46 गुणसूत्र जिम्मेदार है वही चिम्पांजी के लिए लिए 48 गुणसूत्र जिम्मेदार है | ऐसा माना जाता है कि मानव कभी चिम्पांजी से ही उत्परिवर्तन की प्रक्रिया में अलग हुआ होगा ( आज तक प्रमाणित नहीं हो सका है ) चिम्पांजी का अंतरिक्ष में जाना ( हेम नामक चिम गया था ) या फिर गुडाल का ये अध्ययन कि चिम्पांजी मानव की तरह की उपकरण के प्रयोग करता ही नहीं है बल्कि वो अपने लिए उपकरण बना भी सकते है आदि तथ्यों के कारण ही मैंने चिम्पांजी को देशद्रोह की बात करने के लिए चुना है ना कि कुत्ता , शेर आदि को !!!!!!!!!!!!
अब बात देश द्रोह की वैसे तो चिमपंजी कभी भी देश जैसी संरचना का हिस्सा नहीं नहीं बना और न ही उसने कोई देश बनाया पर मानव ने देश जैसी संरचना को जन्म दिया जो छोटे छोटे कबीले के रहने वाली जगह और खेती आदि का संयुंक्त पूर्व रूप है जिसे आज हम देश कहते है और कबीले के सरदारो से हट कर हमने अपनी सुरक्षा और अधिकारों की संरक्षा का भार एक विस्त्रित अर्थ वाले सत्ता को दे दिया।
जिसे आज की भाषा में सरकार कहते है और इसी लिए आज किसी कबीले या समूह से ज्यादा ताकतवर और शक्ति से लैस एक सरकार देश की परिभाषा में होती है और इसी लिए जब देश की सीमा , संसाधन, मूल्यों और सांस्कृतिक विरासत पर आकर्मण करता है तो उसका जवाब देना सरकार का ही काम होता है | राजतांत्रिक व्यवस्था में राजा के काम का कोई विरोध नहीं कर सकता और अगर राजा का करता है तो मृत्युदंड पाता है लेकिन प्रजातन्त्र में क्योकि कोई भी सरकार का हिस्सा बन सकता है इस लिए सत्ता पा चुकी सरकार और सत्ता खो चुकी सरकार के बीच एक वैचारिक संघर्ष हमेशा चलता रहता है ताकि सरकार बनाने के बेहतर मौके खोजे जा सके | लेकिन जब ऐसे मौके तलाशने के लिए देश की सीमा और अखंडता को खतरा पहुचाया जाये तो सरकार से ऊपर संविधान में इसको देश द्रोह के रूप में माना जाता है क्योकि संविधान देश में सर्वोच्च है |
अब बात फिर चिम्पांजी की !!!!!!!!!!!! क्योकि मनुष्य के सबसे नजदीक है इस लिए उसी का उदहारण सबसे उपयुक्त भी है अभी कुछ दिन पहले ही अमेरिका की सर्वोच्च न्यायालय में चिम्पांजी को मानव के समतुल्य मानते हुए उसके मानवाधिकार हनन का मुद्दा उठाया था और निर्णय भी दिया था पर आज देश द्रोह के विषय में चिम्पांजी के व्यबहार को समझने की जरूरत मानव के सन्दर्भ में है | चिम्पांजी अफ्रीका में पाये जाते है ( सच में अफ्रीका अनुवांशिक मंदिर है जहा हर अनुवांशिक पदार्थ का जन्म हुआ है ) और वो जिस क्षेत्र में रहते है वो कई मील का क्षेत्र होता है | उनके समूह से इतर यदि कोई दूसरा चिम्पांजी उनके इलाके में प्रवेश करने का प्रयास करता है तो अपने इलाके में उसके आने का पूरा विरोध किया जाता है खूब तेज तेज आवाज में चिल्लाया जाता है चिमपंजी डराने केलिए अपनी छाती पीटते है और लम्बे लम्बे पेड़ो की टहनी लेकर जमीन पर पीटते है ताकि घुसपैठिये को भगाया जा सके और ये तब तक चलता है जब तक वो अपने क्षेत्र को सुरक्षित न कर ले | आपको शायद पता हो कि ज्यादातर जानवरों , बंदरों नर वानरों में मुखिया गिरी भी होती है और एक पदक्रम भी होता है और मुखिया बनने के लिए वहाँ भी होड़ लगी रहती है वहाँ भी पूरे दल का ये प्रयास रहते है कि कैसे दल को सुरक्षित रखा जाये और क्षेत्र को सुरक्षित रखा जाये |
जब मानव के सबसे नजदीक के प्राणी में इतनी अद्भुत व्यवस्था पायी जाती है तो क्या मानव में इस व्यवस्था का पाया जाना कोई असंभव घटना है !!!!!!!!!!!! जब उनके समूह में घुसपैठिये को रोकने भगाने और उससे लड़ने की एक पूर्ण योजना होती है तो मानव में अपने क्षेत्र ( देश ) को बचाने के लिए कोई योजना का होना और घुसपैठिये के लिए हर उपाय करना किस तरह से गलत है क्या हम चिम्पांजी से भी पीछे चले गए या फिर सिर्फ इस लिए चिम्पांजी से तुलना नहीं हो सकती क्योकि आपके पास शब्द है !!!!!!!!!!!!! चिमपंजी के भी ३२ अक्षरों की खोज हो चुकी है वो भी सन्देश देते है जंगल में सबसे पहले खतरे की सूचना बंदर हो हो हो करके देता है और सारे जानवर अपना बचाव करते है तो क्या बंदर को चुप रहना चाहिए क्योकि मामला शेर की भूख का है या फिर चिम्पांजी को घुसपैठिये को चुपचाप इस लिए अपने दल में सम्मलित कर लेना चाहिए क्योकि अभिव्यक्ति के नाम पर ये उसकी मर्जी है कि वो जिसे चाहे आने दे और जिसे चाहे उसका बहिष्कार करें !!!! इसका मतलब है अपने समूह और और अपने क्षेत्र के हितो से हट कर जब भी कोई किसी तरह का वैचारिक , शारीरिक घुसपैठ करेगा तो उस क्षेत्र ( देश ) के लोगो का विरोध एक नैसर्गिक लक्षण है और जो इस विरोध के विपरीत है वो वैचारिक अभिवयक्ति से ज्यादा ये प्रदर्शन है कि शारीरिक रूप से हम इस देश में है पर हम मानसिक रूप से है नहीं क्योकि कोई भी जानवर और चिम्पांजी कभी बाहरी को न प्रश्रय देता है और ना उनका स्वागत करता है | अभिव्यक्ति की आजादी से ये जरूर पता चलता है कि जो इस देश में रह रहा है वो आज तक सामूहिकता और सामुदायिक भावना को नहीं जी पाया जैसे चिम्पांजी जीते है और ऐसा कोई भी क्षेत्र को क्षति पहुचाने वाला कृत्य देश द्रोह ही माना जाना चाहिए कम से कम मानव सम चिम्पांजी का अध्ययन तो यही कहता है