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डॉ आलोक चान्टिया , अखिल भारतीय अधिकार संगठन
मानव ने संस्कृति के विकास के साथ सात चिकित्सा और विज्ञान में इतनी उन्नति कर लिया है कि आज वह यह बताने में सक्षम है कि किस जीव जंतु के द्वारा कौन सा रोग फैलता है लेकिन क्या आपने कभी भी कहीं पर भी यह तथ्य पड़ा है कि मधुमक्खी के माध्यम से या उसके संपर्क में आने से मनुष्यों को कोई रोग होता है बल्कि मधुमक्खी एक ऐसा नाम है जिसमें मक्खी जैसा नकारात्मक शब्द जुड़ा होने के बाद भी हम सभी जानते हैं कि हमको शहद मिलने का सबसे बड़ा स्रोत यही मक्खी है पूरे विश्व मैं जंगलों और शहरों की बड़ी बड़ी बिल्डिंग किसी भी स्थाई आलंबन पर आपको हजारों मक्खियां एक छत्ता बनाते हुए मिल जाएंगी जिसे मधुमक्खी का छत्ता कहता है और जिस में हैं फूलों के पराग को लाकर या मक्खियां इकट्ठा करती हैं जो शहद कहलाता है यह भी एक महत्वपूर्ण तथ्य है कि भारत का आयुर्वेद पूरी तरह से शहद की धरातल पर ही टिका हुआ है यदि सामान्य तथ्यों के साथ कहीं तो यदि आयुर्वेद से शहद को निकाल दिया जाए तो कुछ बचता ही नहीं है और इस शहद को जन्म देने वाली इकट्ठा करने वाली मधुमक्खी का महत्व सबसे पहली बार स्लोवेनिया देश के एंटोन जान सा ने महसूस किया था जिनका जन्म 20 मई 1734 को हुआ था वह अपने जीवन काल में मधुमक्खी के पालन के लिए काफी कार्य करते रहे।
यही कारण है कि वर्ष 2017 में स्लोवेनिया देश के प्रस्ताव पर संयुक्त राष्ट्र संघ ने 20 मई को विश्व मधुमक्खी दिवस घोषित कर दिया और पहला विश्व मधुमक्खी दिवस 2018 में मनाया गया इस वर्ष पूरा विश्व चौथा विश्व मधुमक्खी दिवस मना रहा है जिसका विषय है बी इंगेज्ड बिल्ड बैक बेटर फॉर बीस वैसे तो महान वैज्ञानिक अल्बर्ट आइंस्टीन ने भी यह बात कही है कि जिस दिन पृथ्वी से मधुमक्खियां गायब हो जाएंगी या समाप्त हो जाएंगी उसके 4 वर्ष के अंदर मानव सभ्यता खत्म हो जाएगी इसी से इस बात का अनुमान लगाया जा सकता है कि मानव जीवन के अस्तित्व के लिए मधुमक्खियों का क्या महत्व है यही नहीं मधुमक्खियों के माध्यम से मनुष्य को प्राकृतिक संतुलन को कैसे बनाए रखते हुए अपने कार्यों को करना चाहिए यह भी सीखने की आवश्यकता है क्योंकि कोई भी व्यक्ति अपनी नंगी आंखों से किसी भी फूल को देखकर यह नहीं बता सकता है कि उसमें किस जगह से मधुमक्खी ने उस फूल को बिना कोई क्षति पहुंचाए उसका पराग अपनी आवश्यकता के अनुरूप ले लिया है और इसी बात की आवश्यकता आज पृथ्वी के अस्तित्व के लिए आवश्यक है मानव भी मधुमक्खी की तरह ही अपनी आवश्यकताओं के अनुरूप पृथ्वी के तत्वों का उपयोग करके शब्द जैसे तत्वों का निर्माण भी करें और प्रकृति को भी कोई क्षति नहीं पहुंचाई यही वास्तविक संदेश मधुमक्खियों द्वारा मनुष्यों को लेने की आवश्यकता है क्योंकि पृथ्वी पर होने वाले समस्त खाद्य उत्पादन में 33% का योगदान मधुमक्खियों के द्वारा होता है ।
यहां विभिन्न फूल पत्ती सब्जी आदि के पौधों पर बैठकर ना सिर्फ उनके पराग को चुस्ती है बल्कि पराग कणों को भी एक जगह से दूसरी जगह पहुंचा कर उत्पादन में सहायक बनती हैं और यही प्रेरणा मनुष्य को भी लेना चाहिए कि प्रकृति के पत्तों का उपयोग करते समय वहां उसके विस्तार को महत्व दे प्राकृतिक का नकारात्मक दोहन करने के बजाय सकारात्मक दोहन कैसे किया जाए इसकी प्रेरणा भी मधुमक्खी द्वारा मनुष्य के सामने रखी जा रही है जिसे आज सीखने की आवश्यकता है लेकिन विज्ञान के अंधी दौड़ में मनुष्य ने मोबाइल क्रांति के माध्यम से 2G 3G 4G 5G 6G 7 जी नेटवर्क का एक ऐसा जाल बिछाना शुरू कर दिया है जिसमें मानव के हाथ में तो पूरी दुनिया सिमट कर रह गई है लेकिन इनके लिए लगाए जाने वाले टावरों से निकलने वाली तरंगों का प्रभाव भी या देखा जा रहा है जहां जहां पर ऐसे टावर लगे हैं वहां पर मधुमक्खियां नहीं दिखाई देती वह छत्ता नहीं लगाती और धीरे-धीरे इन तरंगों के प्रभाव से कई किलोमीटर के दायरे में मधुमक्खी के छत्ते गायब होने लगे हैं ऐसे में मानव को इस बात का सतर्कता के साथ अध्ययन करना होगा कि क्या आने वाले समय में अपने वैभव सुख और वैज्ञानिक क्रांति के दौर में मानव मधुमक्खियों को इस दुनिया से समाप्त कर देगा लेकिन इन सबके करने में क्या वास्तव में मानव स्वयं भस्मासुर बन के अपने भी अस्तित्व को समाप्त कर रहा है विश्व मधुमक्खी दिवस पर इस पर ज्यादा विचार करने की आवश्यकता है और यह समझने की आवश्यकता है क्या मधुमक्खी एक ऐसा प्रतीत है जो बार-बार इस ओर मानव को इंगित कर रही है कि उसे अपने प्रगत की दौड़ का आकलन फिर से करना चाहिए और जियो और जीने दो के सिद्धांत पर काम करते हुए मुट्ठी में दुनिया को कैद करने के बजाय दुनिया को एक स्वतंत्र आईने की तरफ ले जाने का प्रयास करना चाहिए ताकि इस तरंगों के सिद्धांतों में उलझ कर मधुमक्खियां ना इस दुनिया से समाप्त हो और ना ही आने वाले समय में मानव के अस्तित्व का संकट गहराता जाए