डॉ आलोक चान्टिया , अखिल भारतीय अधिकार संगठन

 

ग्रामीण संस्कृति से धीरे-धीरे शहरी संस्कृति की ओर बढ़ते हुए मनुष्य ने विकास और प्रगति के कई आयाम तो स्थापित कर दिए लेकिन एक स्थान से दूसरे स्थान तक जल्दी पहुंचने के लिए उसे समय को मात देने के लिए जिन साधनों का उपयोग करना पड़ा उस में सबसे महत्वपूर्ण साधन तकनीकी आधार पर बनने वाले व वाहन हो गए जो पेट्रोल और डीजल से चलते हैं फिर वह चाहे दोपहिया हो तीन पहिया व चार पहिया हो हवाई जहाज और इन सब के माध्यम से किसी भी देश के नागरिक ने अपने समय की बचत करते हुए किसी भी स्थान पर पहुंचने के लिए एक सहजता को प्राप्त कर लिया लेकिन इस संहिता ने दूसरे उन स्थितियों को भी उत्पन्न कर दिया जिसने ऊर्जा के दूसरे नियम वाले सिद्धांत को भी प्रभावित करना शुरू कर दिया जोया कहता है कि ऊर्जा को ना तो उत्पन्न किया जा सकता है ना नष्ट किया जा सकता है उसको एक माध्यम से दूसरे माध्यम में ले जाने पर उसका स्वरूप बदल जाता है और यही स्वरूप हमको गाड़ियों के अत्यधिक प्रयोग में दिखाई देने लगा।

जब पेट्रोल और डीजल द्वारा वातावरण के ऑक्सीजन के उपयोग करने के बाद जो धोने के रूप में है कार्बन डाइऑक्साइड और अन्य कैसे हैं वातावरण में फैलने लगी उन्होंने प्रदूषण को एक ऐसी गंभीर स्थिति में पहुंचा दिया जिसमें शहर में रहने वाले मनुष्य के जीवन को ही नहीं प्रकृति को भी खतरा उत्पन्न हो गया और यह खतरा तब और ज्यादा बढ़ गया जब प्रकृति में हमने पेड़ों की भी अंधाधुंध कटाई शुरु कर दी पर बात यहीं तक समाप्त नहीं हुई गाड़ियों को जीवन में प्राप्त करने के बाद शहर का विस्तार होने लगा कम समय में लंबी दूरी नापने लेने के कारण मानो अब सिर्फ शहर के केंद्र के पास रहने के बजाय शहर की परिधि को इतना बड़ा था चला गया कि देखते-देखते भारत जैसे देश में भी मेट्रोपॉलिटन शहरों की बाढ़ आ गई और हर शहर में एक व्यवस्था भी फैलती चली गई वह व्यवस्था चाहे जल प्रदूषण की वजह वायु प्रदूषण ध्वनि प्रदूषण की हो और इन सब ने पर्यावरण को प्रभावित किया मानव जीवन को प्रभावित किया और ना जाने कितने ऐसे जीव जंतुओं को प्रभावित किया जो विलुप्त हो गए या विलुप्त की कगार पर पहुंच गए यही कारण है कि संवेदनशील मानव के द्वारा इस बात पर भी विचार किया जाने लगा कि ऐसे कौन से उपाय किए जाएं जिससे मानव प्रगति विकास का आनंद भी ले पर्यावरण भी सुरक्षित रहें और इन्हीं सोच और दर्शन के कारण उसे ऐसा लगा की गाड़ियों की लिए ऐसी व्यवस्था की जाए जो पर्यावरण को कम से कम नुकसान पहुंचाएं इसके लिए आवश्यक था कि जो गाड़ियां पर्यावरण को ज्यादा नुकसान पहुंचा रही है उनको क्रमिक तरीके से बंद कर दिया जाए लेकिन इसके लिए आवश्यक था कि न्यायपालिका इसमें अपनी सहभागिता को सुनिश्चित करते हुए लोगों के सामने यह आदेश रखें कि ऐसी कोई भी गाड़ी का उपयोग नहीं किया जा सकता है जिनसे प्रदूषण का स्तर बढ़ रहा हो और यही कारण है कि देश के सर्वोच्च न्यायालय द्वारा 13 4 2017 को यह आदेश पारित किया गया था की ऐसी कोई भी गाड़ी जो भारत स्टेज 4 के अंतर्गत नहीं आती है वहां 1अप्रैल 2017 से ना तो भेजी जाएंगी और ना ही उनका कोई पंजीकरण किया जाएगा

यह वह समय था जब भारत स्टेज 4 की गाड़ियों को सड़कों पर उतारा गया या वह गाड़ियां थी जो पर्यावरण के अनुकूल थी और जिनके माध्यम से पर्यावरण को संतुलित रखते हुए लोग अपनी सुविधाओं के अनुसार गाड़ियों का प्रयोग कर सकते थे आदेश में यह भी कहा गया था कि वह गाड़ियां जो 31 मार्च 2017 तक भारत स्टेज की शर्तों से पूर्व खरीदी जा चुकी है उनका पंजीकरण किया जाएगा लेकिन 1 अप्रैल 2017 की स्थिति में कोई भी गाड़ी इस तरह की नहीं खरीदी जाएगी जो पर्यावरण की स्थितियों को बनाए रखने में सक्षम नहीं होगी अर्थात ऐसी गाड़ियां जो भारत स्टेज शो के अंतर्गत नहीं होंगी वह 1 अप्रैल 2017 से नहीं खरीदी जाएंगे यही स्थिति लगातार चलती रही और लोगों ने भारत स्टेज 4 की गाड़ियां खरीदना शुरू कर दिया लेकिन कुछ समय बाद ही यह भी महसूस किया जाने लगा कि भारत स्टेज शो की गाड़ियां भी पर्यावरण के अनुकूल नहीं है और प्रकृति की सुरक्षा के लिए भारत स्टेज सिक्स की गाड़ियों को सड़कों पर उतारा जाए और इसके लिए फिर से देश की सर्वोच्च न्यायालय का सहारा लेते हुए एक वार्ड लाया गया जिसमें 24 अक्टूबर 2018 को माननीय सर्वोच्च न्यायालय नई दिल्ली द्वारा भारत सरकार को यह निर्देश दिया गया की ऐसी कोई भी गाड़ी जो बीएस-4 के अंतर्गत चल रही है उसका किसी भी तरह से विक्रय यह पंजीकरण 1 अप्रैल 2020 से नहीं किया जाएगा लेकिन 2017 के आदेश के प्रकाश में यह बात बिल्कुल स्पष्ट थी कि ऐसी कोई भी गाड़ियां जो 31 मार्च 2020 तक बीएस-4 के अंतर्गत खरीदी जा चुकी हैं उनका विक्रय और पंजीकरण किया जाना चाहिए था लेकिन जब यह सभी प्रक्रिया चल रही थी तभी पूरे विश्व में कोरोना विषाणु संक्रमण के कारण एक ऐसी स्थिति पैदा हो गई जिसमें देश में सरकार द्वारा मार्च के अंतिम सप्ताह से संपूर्ण लॉकडाउन लगा दिया गया जिसके कारण किसी भी तरह का व्यवसायिक सार्वजनिक कार्य रोक दिया गया और यही कारण है कि ऐसी वह सारी गाड़ियां जो bs4 श्रेणी के अंतर्गत खरीदी जा चुकी थी उनका पंजीकरण नहीं हो पाया लेकिन देश की सर्वोच्च न्यायालय के आदेश के प्रकाश में जब 31 मार्च 2020 तक सारी गाड़ियां खरीदी जा चुकी थी तो नागरिकों के धन और उनके द्वारा शोरूम में डीलरों के साथ पूरी गई प्रक्रिया के बाद भी उनकी गाड़ियों का पंजीकरण आरटीओ द्वारा नहीं किया जा रहा है।

इस संदर्भ में यह भी स्पष्ट होना जरूरी है कि डीलर के माध्यम से इंश्योरेंस के कार्य भी 31 मार्च 2020 से पहले ऐसी गाड़ियों के पूर्ण कर लिए गए थे अखिल भारतीय अधिकार संगठन द्वारा पर जब आरटीओ लखनऊ से प्रश्न किया गया तो उन्होंने कहा कि देश की सर्वोच्च न्यायालय द्वारा 24 अक्टूबर 2018 को दिए गए निर्णय के प्रकाश में 1 अप्रैल 2020 से किसी भी गाड़ी का जो bs4 प्रकृति है ना तो विक्रय हो सकता है ना पंजीयन हो सकता है लेकिन उनके द्वारा इस बात पर कोई भी स्पष्टीकरण नहीं दिया गया कि जो गाड़ियां 31 मार्च 2020 तक देश के नागरिकों द्वारा bs4 प्रकृति में खरीदी जा चुकी हैं जिनकी सारी औपचारिकताएं पूरी की जा चुकी है यदि उन गाड़ियों के पंजीकरण में लॉकडाउन की स्थिति के कारण कोई व्यवधान उत्पन्न हुआ है तो ऐसे नागरिकों के धन और पंजीकरण के नुकसान को कैसे विधिक माना जा सकता है जबकि सर्वोच्च न्यायालय नई दिल्ली के आदेश रिट संख्या 13029 यह स्पष्ट कर दिया गया है की 1 अप्रैल 2020 से कोई गाड़ी खरीदी या पंजीयन नहीं की जाएगी लेकिन उससे पूर्व खरीदी गई गाड़ी का पंजीयन तो विधिक रूप से नागरिकों के सुरक्षा संरक्षा और दूसरों के जीवन की सुरक्षा संरक्षा के लिए अनिवार्य होना चाहिए जैसा कि सर्वोच्च न्यायालय ने अपने 13 अप्रैल 2017 के आदेश में ही स्पष्ट कर दिया था कि ऐसी गाड़ियां जो 21 मार्च 2017 तक खरीदी जा चुकी है उनका पंजीयन किया जाएगा भले ही वह भारत स्टेज की श्रेणी में नहीं आती और यही व्यवस्था आगे भी चलनी चाहिए क्योंकि सर्वोच्च न्यायालय ने अपने आदेश में यह स्पष्ट रुप से लिखा है कोई भी गाड़ी जो bs4 सैनी की है उनका खरीदना या पंजीयन 1-4- 2020 से नहीं किया जाएगा लेकिन यदि वह उससे पूर्व खरीदी जा चुकी है तो यह प्रत्येक नागरिक का विधिक अधिकार है कि वह उसके पंजीयन को प्राप्त करें और यह विधिक कर्तव्य है आरटीओ का कि वह ऐसे पंजीयन को पूर्णता प्रदान करें क्योंकि ऐसे पंजीयन में बाधा प्राकृतिक आपदा के कारण उत्पन्न हुई है है जिसके लिए नागरिक को जिम्मेदार नहीं ठहराया जाना चाहिए और यह सर्वोच्च न्यायालय नई दिल्ली के आदेश की अनदेखी है इस तरह से देश में पर्यावरण के नाम पर किए जा रहे प्रयासों और सर्वोच्च न्यायालय के आदेशों की अनदेखी करके देश के नागरिकों के धन और उनकी सुरक्षा संरक्षा के साथ आरटीओ लखनऊ द्वारा एक मानवाधिकार उल्लंघन किया जा रहा है जिस पर सर्वोच्च न्यायालय नई दिल्ली के 24 अक्टूबर 2018 के आदेश के प्रकाश में नियमानुसार तत्काल पंजीयन करने की कार्यवाही की जानी चाहिए जिस पर सरकार को तत्काल ध्यान देने की आवश्यकता है क्योंकि यह प्रकरण मानव के नागरिकों के धन संबंधी अधिकार का है उनके सुरक्षा के अधिकार का है उनकी संरक्षा के अधिकार का है और सर्वोच्च न्यायालय के आदेशों के वास्तविक और सही अनुपालन का है