राजेश कुमार लंगेह.

 

मिल्खा था वो, जो मशक्कत का मिसाल हुआ था
तोड़ इंसानी हदों को , यलगार उसका हुआ था

कुछ  जुनूं की बात थी उसमें ,जो अंजुम- ए-ख़ास हुआ था
खाक में हस्ती मिटाकर, गुले गुलजार हुआ था
मिल्खा था वो, जो मशक्कत का मिसाल हुआ था
तोड़ इंसानी हदों को , यलगार उसका हुआ था ।

हवा में कदमों की हरारत थी
सांसों की रफ्तार में सुरमई सरगम थी
तूफ़ाँ  में परवाज थी उसकी
आवाज में  हर दम मरहम थी
वो एक पल नहीं एक बड़ा दौर हुआ था
मिल्खा था वो, जो मशक्कत का मिसाल हुआ था ।
तोड़ इंसानी हदों को , यलगार उसका हुआ था ।

तंग थे हालत उसके, हवाओं में बगावत थी
जोश बेइंतहा था, पर कदम-कदम पर रुकावट थी
उठा था शमशीर बनके, दुनिया जीता हुआ था
मिल्खा था वो, जो मशक्कत का मिसाल हुआ था
तोड़ इंसानी हदों को , यलगार उसका हुआ था।

जीना कैसे है ? सिखा गया
पसीना मेहनत का महका गया
रुख हवाओं का मोड़, उम्र को हराना दिखा गया
ऐसे भागा  था मैदान में, दिलों में समाया हुआ था
मिल्खा था वो, जो मशक्कत की मिसाल हुआ था
तोड़ इंसानी हदों को , यलगार उसका हुआ था।