🍷लॉक डाउन की मधुशाला 🍷
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कोई मांग रहा था देशी,
और कोई फॉरेन वाला।
वीर अनेकों टूट पड़े थे,
खूल चुकी थी मधुशाला।

शासन का आदेश हुआ था,
गदगद था ठेके वाला।
पहला ग्राहक देव रूप था,
अर्पित किया उसे माला।

भक्तों की लंबी थी कतारें,
भेद मिटा गोरा काला।
हिन्दू मुस्लिम साथ खड़े थे,
मेल कराती मधुशाला।

चालीस दिन की प्यास तेज थी,
देशी पर भी था ताला।
पहली बूंद के पाने भर से,
छलक उठा मय का प्याला।

गटक गया वो सारी बोतल,
तृप्त हुई उर की ज्वाला।
राग द्वेष सब भूल चुका था,
बाहर था अंदर वाला।

हंस के उसने गर्व से बोला,
देख ले ऐ ऊपर वाला।
मंदिर मस्जिद बंद हैं तेरे,
खुली हुई है मधुशाला।

पैर बिचारे झूम रहे थे,
आगे था सीवर नाला।
जलधारा में लीन हो गया,
जैसे ही पग को डाला।

दौड़े भागे लोग उठाने,
नाक मुंह सब था काला।
अपने दीवाने की हालत,
देख रही थी मधुशाला।
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